कैसे करे मुंग की खेती? जाने बुआई से कटाई तक की पूरी जानकारी
कैसे करे मुंग की खेती? जाने बुआई से कटाई तक की पूरी जानकारी
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कैसे करे मुंग की खेती? जाने बुआई से कटाई तक की पूरी जानकारी : दलहनी फसलों में मूंग का अपना एक विशिष्ट स्थान है। मूंग की फसल को खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। मूंग में काफी मात्रा में प्रोटीन पाए जाने से हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ ही खेत की मिट्टी के लिए भी बहुत फामदेमंद है। मूंग की फसल से फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है।
कैसे करे मुंग की खेती? जाने बुआई से कटाई तक की पूरी जानकारी
मूंग की खेती :
दलहनी फसलों में मूंग की बहुत बढ़ी भूमिका है , इससे पौष्टिक तत्व प्रोटीन पर्याप्त होने के कारण स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मूंग में वसा की मात्रा कम होती है और इसमें विटामिन बी कम्पलेक्स, कैल्शियम, खाद्य रेशा एवं पोटेशियम भरपूर होता है। गर्मी में मूंग की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि फली तोड़ने के बाद फसलों को भूमि में पलट देने से यह हरी खाद की पूर्ति भी करता है। इतना ही नहीं सरकार मूंग को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदतीं है। किसान मूंग की उन्नत कृषि क्रियाएं अपनाकर उत्पादकता को बढ़ा सकता है।
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मुंग की बुवाई का समय व तरीका :
मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए। देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक की जा सकती है। सीडड्रिल की सहायता से कतारों में बुवाई करें। कतारों के बीच की दूरी 30-45 से.मी. रखते हुए 3 से 5 से.मी. गहराई पर बीज बोना चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना उचित रहता है। ध्यान रहे मूंग के बीज उत्पादन का प्रक्षेत्र किसी दूसरी प्रजाति के मूंग के प्रक्षेत्र से 3 मीटर दूर होना चाहिए।
खाद और सिचाई का समय :
10-15 किलो नत्रजन, 40 किलो फास्फोरस एवं 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें। फास्फोरस के प्रयोग से मूंग की उपज में विशेष वृद्वि होती है। उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूड़ों में बीज से 2-3 सेमी नीचे देना चाहिए।
पहली सिंचाई बहुत जल्दी करने से जड़ों तथा ग्रन्थियों के विकास पर विपरित प्रभाव पड़ता है। फूल आने से पहले तथा दाना पड़ते समय सिंचाई आवश्यक है। सिंचाई क्यारी बनाकर करना चाहिए। जहाॅ स्प्रिंकलर हो वहाॅ इसका प्रयोग उत्तम जल प्रबन्ध हेतु किया जाये। मिट्टी की जलधारण क्षमता कम होने तथा जलवायु के अनुसार किसान खेत में 6-8 सिंचाई तक करते हैं।पहली सिंचाई बुवाई के 20-35 दिन बाद और फिर बाद में 10-15 दिन के अन्तर से आवश्यकतानुसार सिंचाई की जाये।
खरपतवार नियंत्रण :
फसल की बुवाई के एक या दो दिन बाद तक पेन्डीमेथलिन की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए फसल जब 25 -30 दिन की हो जाए तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिए या इमेंजीथाइपर की 750 मी. ली. मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव कर देना चाहिए।
फसल कटाई :
जब फलियों का रंग हरे से भूरा होने लगे तब फलियों की तुड़ाई तथा एक साथ पकने वाली प्रजातियों में कटाई कर लेना चाहिये तथा शेष फसल की मिट्टी में जुताई करने से हरी खाद की पूर्ति भी होती है। फलियों के अधिक पकने पर तुड़ाई करने पर फलियों के चटकने का डर रहता है जिससे कम उत्पादन प्राप्त होता है। मूंग की 7 -8 कुंतल प्रति हेक्टयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है। एक हेक्टयर क्षेत्र में मूंग की खेती करने के लिए 18-20 हजार रुपए का खर्च आ जाता है। मूंग का भाव 40 रुपए प्रति किलो होने पर 12000- से 14000 रुपए प्रति हेक्टयर शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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