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Moong Ki Kheti: मूंग की अति शीघ्र पकने वाली ये नई जातियां देगी 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर उत्पादन, यहाँ जाने कैसे करे इसकी खेती 

Moong Ki Kheti: मूंग की अति शीघ्र पकने वाली ये नई जातियां देगी 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर उत्पादन, यहाँ जाने कैसे करे इसकी खेती। मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसके दाने का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिये किया जाता है जिसमें 24-26% प्रोटीन,55-60% कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3% वसा होता है।  मध्यप्रदेश में मूंग की फसल हरदा, होशंगाबाद, जबलपुर, ग्वालियर, भिण्ड, मुरेना, श्योपुर एवं शिवपुरी जिले में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। किसान भाई मूंग की उन्नत प्रजातियो एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर पैदावार को 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टयर तक प्राप्त कर सकते है। आइये जानते है इसके खेती के बारे में…..

Moong Ki Kheti

मूंग की खेती हेतु दोमट से बलुअर दोमट भूमियाँ जिनका पी. एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये। मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। खरीफ की फसल हेतु एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए एंव वर्षा प्रराम्भ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4-5 दिन छोड कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावे। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं।

Suitable time and improved varieties of moong sowing

खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है। खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 20 कि.ग्रा./है. पर्याप्त होता है। ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 25-30 कि.ग्रा/है. बीज की आवश्यकता पड़ती है। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिये20-22.5 से.मी. रखी जाती है। मुंग की उन्नत किस्मो की बात करे तो टॉम्बे जवाहर मूंग-3, जवाहर मूंग -721, के – 851, एच.यू.एम. 1, पी.डी.एम – 11, पूसा विशाल ये मूंग की उन्नत किस्मे है।

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New early maturing varieties of mung bean

मूंग की दो अतिशीघ्र पकने वाली जातियों का विकास भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र कानपुर द्वारा किया गया है। पहली जाति आई.पी. एम. 205-7 है जो आई.पी.एम.2-1 और ई.सी. 39889 के क्रास से बनी है। यह नई जाति 45 से 48 दिन में पककर तैयार हो जाती है। दूसरी जाति आई.पी.एम. 409-4 है जो पी.डी.एम. 288 और आई.पी.एम. 3-1 के क्रास से बनी है। यह जाति भी 45 से 48 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। दोनों ही जातियां मूंग के पीले मोजेक वाइरस के प्रति प्रतिरोधी हैं। इनकी उपज क्षमता लगभग 8 क्विं. प्रति हेक्टर है। मूंग की अति शीघ्र पकने वाली ये नई जातियां देगी 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर उत्पादन, यहाँ जाने कैसे करे इसकी खेती।

Moong Ki Kheti: मूंग की अति शीघ्र पकने वाली ये नई जातियां देगी 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर उत्पादन, यहाँ जाने कैसे करे इसकी खेती

ग्रीष्मकालीन धान का विकल्प बन रही मूंग की फसल

Harvesting and Production

मूंग की फसल क्रमश 65-70 दिन में पक जाती है। अर्थात जुलाई में बोई गई फसल सितम्बर तथा अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कट जाती है। फरवरी-मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है। फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है। मूंग की अति शीघ्र पकने वाली ये नई जातियां देगी 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टर उत्पादन, यहाँ जाने कैसे करे इसकी खेती। मूंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर 8-10 क्विंटल/है. औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/है. उपज प्राप्त की जा सकती है। भण्ड़ारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8-10% रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।

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