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मनोरंजन

Metro…In Dino Review: अनुराग बासु की फिल्म ‘मेट्रो इन दिनों’ रिलीज, पढ़ें यहां रिव्यू..

Metro…In Dino Review मुंबई की भीगी सड़कों, ट्रैफिक की गूंज और खिड़की पर गिरती बारिश की बूंदों के बीच ‘मेट्रो…इन दिनों’ देखना किसी इमोशनल सफर पर निकलने जैसा लगता है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक अनुभव है, एक ऐसा अनुभव जो दिल को छूता है, रिश्तों को कुरेदता है और सादगी के भीतर छुपे गहरे भावों को उजागर करता है। अनुराग बसु द्वारा निर्देशित यह एंथोलॉजी फिल्म एक साथ कई कहानियों को ऐसे पिरोती है जैसे कोई पुराना रेडियो साउंडट्रैक पर बज रही अलग-अलग भावनाओं वाली धुनों को एक ही राग में ढाल दे। फिल्म की सबसे खास बात यह है कि यह ज्यादा कुछ कहती नहीं, बस दिखाती है और इस ‘कम में ज़्यादा’ की कला में अनुराग बसु माहिर हैं। वह रिश्तों की उलझनों को ऐसे दर्शाते हैं जैसे बारिश में भीगते हुए कोई अपना पुराने किस्से सुना रहा हो, बगैर शोर के, बगैर नाटक के, बस दिल से।

 

पहली कहानी

इंसानी रिश्तों की जटिल सादगी दिखाने वाली इस फिल्म की कहानी के बारे में अब बात करते हैं। काजोल घोष (कोंकणा सेन शर्मा) और मॉन्टी (पंकज त्रिपाठी) की कहानी फिल्म की रीढ़ है। वे एक मध्यमवर्गीय दंपती हैं, शादी को कई साल हो चुके हैं, एक किशोरी बेटी है जो खुद से जूझ रही है और एक ऐसा रिश्ता है जो अब न धधकता है, न बुझा है। काजोल तब चौंक जाती है जब उसे पता चलता है कि मॉन्टी डेटिंग ऐप पर किसी अनजान औरत से बात करता है, ठीक वैसे ही जैसे उसकी एक दोस्त का पति करता था। लेकिन इस कहानी में धोखे से कहीं ज्यादा भावनाएं हैं। इसमें वो गुस्सा है जो उम्र के साथ दबा रहता है, वो चुप्पी है जो रिश्तों को खा जाती है और वो ‘छोड़ देने की हिम्मत’ जो हमारी मांओं में कभी नहीं थी, लेकिन बेटियां अब ऐसा करने की हिम्मत रखती हैं। कोंकणा, एक बार फिर अपनी परिपक्व और आत्मविश्वासी अदाकारी से काजोल के किरदार में जान डाल देती हैं। वहीं पंकज त्रिपाठी मॉन्टी को उसी मासूमियत और सहजता से निभाते हैं, जैसे वो किसी चाय की दुकान पर बैठे दोस्त हों, जो कुछ गलत कर चुका है पर वाकई पछता रहा है।

नई उम्र के रिश्ते- उलझन और उम्मीद के बीच

फिल्म की दूसरी कहानी में सारा अली खान (चुमकी) और आदित्य रॉय कपूर (पार्थ) हैं, दो युवा, दो अलग-अलग रास्तों पर चल रहे लोग, जिनके बीच कोई तयशुदा मंजिल नहीं है। सारा उलझी हुई हैं, अस्थिर हैं, अपने अंदर की आवाज को सुनने की कोशिश कर रही है, लेकिन वो आवाज भी कभी साफ नहीं आती। आदित्य उस जद्दोजहद में ठंडक जैसा है, एक अस्थायी शांति। इस कपल की केमिस्ट्री फिल्म में सबसे अनप्रिडिक्टेबल है। उनका रिश्ता बंधा नहीं है, फिर भी जुड़ा है। सारा अली खान से इस बार काफी उम्मीदें थीं। उनके काम में काफी सुधार भी है, लेकिन उनके सामने एक्टिंग में माहिर आदित्य रॉय कपूर हैं, ऐसे में उनकी पूरी ईमानदारी भी थोड़ी फीकी पड़ती है। पहले की तुलना में वो नियंत्रित दिखी हैं, बर्दाश्त से बाहर रहने वाली उनकी एक्टिंग इस बार बर्दाश्त की जा सकती है। शायद उसकी एक वजह ये भी है कि आदित्य से आपकी नजर नहीं हटेगी।

 

आधुनिक रिश्तों की सच्चाई

अली फजल (आकाश) और फातिमा सना शेख (श्रुति) के बीच का रिश्ता फिल्म का सबसे असहज लेकिन सच्चा हिस्सा है। दोनों एक ऐसे रिश्ते में हैं जो खत्म हो चुका है, लेकिन उनकी आदतें और डर उन्हें बाहर निकलने नहीं देते। उनका रिश्ता हमें हमारे आसपास के उन जोड़ों की याद दिलाता है जो साथ तो हैं पर एक-दूसरे से बहुत दूर हैं। इन कहानियों के बीच, नीना गुप्ता और अनुपम खेर की जोड़ी एक सुखद विराम देती है, दो उम्रदराज लोग जो फिर से मुस्कुराना सीख रहे हैं। उनका रोमांस कोलकाता की गलियों जैसी ही पुरानी और प्यारी खुशबू लिए हुए है, धीमा, लेकिन असरदार। एक्टर्स के काम पर नजर डालें तो अली फजल और फातिमा सना शेख के काम डेप्थ नजर आई है। दोनों ही एक साथ जच रहे हैं। इस जोड़ी को दोबारा साथ देखने की चाहत होगी। वहीं नीना गुप्ता और अनुपम खेर एक्टिंग की कला का बाजीगर हैं। उनके काम सफाई है और वो दिल जीतने में किसी से पीछे नहीं रहते।

 

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क्या यह फिल्म आपके लिए है?

Metro…In Dino Reviewअगर आप तेज, ट्विस्ट से भरी, हाइपर ड्रामेटिक फिल्में देखना पसंद करते हैं तो शायद यह फिल्म आपको धीमी लगे, लेकिन अगर आप उन फिल्मों को पसंद करते हैं जो आपको भीतर से छू जाती हैं, जो खत्म होने के बाद भी आपके साथ रहती हैं, तो टमेट्रो…इन दिनोंट आपके लिए बनी है। यह फिल्म उन पलों को समेटती है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, जिसमें रोजमर्रा की जद्दोजहद, टूटते रिश्ते, नई शुरुआतें, और माफी की गुंजाइश शामिल हैं। अंत में… “मेट्रो…इन दिनों” कोई परफेक्ट फिल्म नहीं है, इसमें भी कमियां हैं, कुछ कहानियां अधूरी लगती हैं, कुछ किरदारों का अंत अपेक्षित नहीं, लेकिन ठीक वैसे ही जैसे जिंदगी कभी पूरी नहीं होती, बस चलती रहती है। यही फिल्म की खूबसूरती है। यह एक ऐसी फिल्म है जिसे देखकर आप सोचेंगे- ‘काश थोड़ी और लंबी होती…’ और यही किसी फिल्म की सबसे बड़ी जीत होती है।

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