छत्तीसगढ़ न्यूज़ (समाचार)

छत्तीसगढ़ के इतिहास का एक ऐसा भी दिन…..

सुनने में अजीब लगता है। लेकिन, एक नई जानकारी प्रशासनिक हलकों को चौंकाने वाली है। छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक दिन ऐसा भी हुआ था जब एक एसपी को कलेक्टर की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ी थी। ये बात आजादी के ठीक बाद 1948 की है। इस बात को उजागर करने वाले रिटायर्ड आईपीएस (1965 बैच) पीवी राजगोपाल ने मुख्य सचिव अमिताभ जैन को इससे संबंधित डायरी के कुछ पन्ने भेजे हैं और रायगढ़ के प्रशासनिक इतिहास को दुरुस्त करने का आग्रह भी किया है।

मुख्य सचिव ने भी मामले को दिलचस्प बताते हुए कहा है कि इसकी पूरी जानकारी निकलवाई जाएगी। तब छत्तीसगढ़ भी मध्यप्रदेश के साथ सीपी बरार का हिस्सा था। उस वक्त कलेक्टर को उपायुक्त यानी डिप्टी कमिश्नर कहा जाता था। सेवानिवृत्त आईपीएस (1965 बैच) पीवी राजगोपाल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के निदेशक रह चुके हैं।

उनके मुताबिक 1948 में तत्कालीन कलेक्टर (उपायुक्त) रामाधीर मिश्रा की अचानक मृत्यु हो गई थी। तब प्रशासनिक व्यवस्था का दायित्व के एफ. रूस्तम जी को सौंपा गया। ये वे रूस्तम जी हैं जिन्होंने 1952 से छह साल तक देश के पहले पीएम पं. जवाहर लाल नेहरू के मुख्य सुरक्षा अधिकारी का दायित्व संभाला था। वे बीएसएफ के संस्थापक डीजी भी रहे। उन्हें पद्म विभूषण से भी नवाजा गया। बताते हैं कि स्वतंत्रता से एक हफ्ते पहले तक केएफ रूस्तम जी अमरावती के पुलिस अधीकारी 1947 के आखिरी में उन्हें रायगढ़ शहर का एसपी बनाया गया। तब पांच रियासतों रायगढ़, जशपुर, सारंगढ़, उदयपुर व सक्ती को मिलाकर रायगढ़ जिला बनाने का निर्देश दिया गया था। एसपी रूस्तम जी और तत्कालीन उपायुक्त मिश्रा दोनों 1 जनवरी 1948 को रायगढ़ पहुंचे।

वे तत्काल रियासतों के राजाओं से मिलकर उनके एकीकरण की औपचारिकताएं पूरी करने में जुट गए। इन व्यस्तताओं के बीच तीन हफ्ते में ही उपायुक्त मिश्रा के पेट में तेज दर्द होने लगा था। तब उन्हें रायपुर के अस्पताल में एडमिट किया गया। यहां आंतों के इंफेक्शन की वजह से उनकी मौत हो गई।

आजादी के ठीक बाद उन दिनों उपायुक्तों की भारी कमी थी। पांच रियासतों में एक भी डिप्टी कलेक्टर तक नहीं था। अत: सरकार ने विशेष आदेश जारी कर एसपी रूस्तम जी को अगले आदेश तक उपायुक्त यानि उस वक्त के कलेक्टर की भी जिम्मेदारी संभालने के निर्देश दिए।

इस घटनाक्रम के आसपास ही 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हो गई। सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखने वे, उनकी पत्नी, जिला जज बीके चौधरी और कलेक्ट्रेट स्टाफ रामधुन गाते हुए सड़कों पर निकलते थे। रायगढ़ शहर की सड़कों पर कौमी एकता का जुलूस निकाला गया।

लोग इस तरह जुटने लगे कि यह हुजूम रायगढ़ की जीवनदायिनी केलो नदी तक पहुंच गया। राष्ट्रपिता के अंतिम संस्कार की खबर के साथ ही बापूजी अमर रहे के नारे भी गूंजते रहे। इसके कुछ महीनों बाद डिप्टी कलेक्टर जेके वर्मा को रायगढ़ जिले का उपायुक्त नियुक्त कर दिया गया, जिन्हें रूस्तम जी ने डिप्टी कमिश्नर का कार्यभार सौंपा। रायगढ़ जिले की वेबसाइट में इस विवरण का उल्लेख न होने पर राजगोपाल ने जानकारी अपडेट करने तथा संशोधन करने रायगढ़ कलेक्टर को जानकारी भेजी है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन को किसी डायरी के पृष्ठों की प्रति भी भेजी है। वेबसाइट में अब तक इसे संशोधित नहीं किया गया है।

मार्च 2003 में अपनी मृत्यु के दिन तक डायरी लिखी
यह भी रोचक ही है कि रूस्तम जी ने कागज की एक लंबी शीट पर डायरी लिखने की प्रथा 1938 में ही प्रारंभ कर दी थी। तब वे थानेदार के रूप में प्रशिक्षण के लिए एक पुलिस स्टेशन में तैनात थे। उन्होंने मार्च 2003 में अपनी मृत्यु के दिन तक यह दैनंदिनी जारी रखी थी। अब यह इतिहास की गवाह बन चुकी है।

उनकी ज्यादातर डायरियां दिल्ली में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय व पुस्तकालय में रखी हैं। रूस्तमजी ने इन हस्तलिपि डायरी के पन्नों में रायगढ़ पर एक अलग अध्याय लिखा है। उन्होंने इन घटनाओं का उल्लेख किया है। सेवानिवृत्त आईपीएस राजगोपाल ने रूस्तम जी की जीवनी को दो खंडों में लिखी है।

दिलचस्प घटना
सीएस | इस मामले में प्रदेश के मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने कहा कि यह दिलचस्प घटना है। मामला काफी पुराना है। मध्यप्रदेश के प्रदेश बनने उसके बाद छत्तीसगढ़ को नया राज्य बने काफी समय हो गया है। रायगढ़ जिले से इसकी तस्दीक कराएंगे।

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