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Korba News:शराब और ड्रग्स से खुद की तबाह हुई जिंदगी तो नशे के खिलाफ थॉमस चलाते हैं अनोखा अभियान

Korba News रायगढ़, 20 नवंबर। शहर के थॉमस वर्गीस एक ऐसे शख्स हैं, जिनकी जिंदगी शराब और ड्रग्स की लत से बर्बाद हुई और ब्रेन हेमरेज होने पर वे मौत की दहलीज से लौटे, तबसे उन्होंने नशाबंदी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। लाठी के सहारे चलते हुए थॉमस जब सड़कों पर निकलते हैं तो कंधे में रिकॉर्डेड स्पीकर से वे लोगों को नशीली चीजों से दूर रहने की न केवल सलाह देते हैं, बल्कि तम्बाखू गुटखा खाने वालों को अपनी तबाही का उदाहरण देते हुए अनोखे तरीके से जागरूक भी करते हैं।

आमतौर पर लोग मॉर्निंग वॉक पर कसरत या योग करते हुए दिखते हैं, लेकिन हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी में रहने वाले थॉमस वर्गीस (52 साल) की सुबह औरों से बिल्कुल जुदा होती है। शारीरिक रूप से अक्षम थॉमस हाथ में लाठी थामे ले-देकर कदम बढ़ाते हुए जब मॉर्निंग वॉक पर घर से निकलते हैं तो लोगों की निगाहें उनपर टिक जाती है। दरअसल, हाफपैंट- कमीज और सैंडिल पहने थॉमस के कंधे पर काले रंग का एक बैग लटका रहता है, जिसमें रखे स्पीकर से जो रिकॉर्डेड संदेश निकलता है, वह हटकर है।
ड्रग्स, शराब, सिगरेट, तम्बाखू, गुटखा खैनी से दूर रहें, इसका सेवन हानिकारक है। जनजागरूकता का ये वहीं संदेश है, जिसे थॉमस लेकर रोज सुबह घर से निकलते हैं और आसपास तफरीह करते हुए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं, ताकि नशे की दलदल में कोई और फंसकर जीवनभर पछता न सके। थॉमस के इस अनोखे शौक के पीछे की कहानी भी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। परिजन बताते हैं कि एक जमाने मे एसटीडी-पीसीओ और ऑटो पार्ट्स दुकान से लेकर होटल का कारोबार कर चुके थॉमस शराब के साथ ड्रग्स के चंगुल में इस कदर फंसे कि रोजगार तक दांव पर लग गया।
नशे की दुनिया में भटकने के कारण 26 अगस्त 2006 को अटैक आने पर थॉमस की तबियत बिगड़ी और रायगढ़ में ठीक नहीं होने पर उनको रायपुर लेकर गए तो जांच में खुलासा हुआ कि उनको ब्रेन हेमरेज है। यही नहीं, थॉमस के क्रिटिकल कंडीशन को देख डॉक्टर्स ने ऑपरेशन न कराने की सलाह देते हुए यह तक कह दिया तहस कि वे नहीं बचेंगे। हालत ये थी कि हाई ब्लडप्रेशर और पसीने से तरबतर थॉमस चल तक नहीं पाते थे, फिर भी मां सारम्मा वर्गीस (स्वास्थ्य कर्मचारी) का दिल नहीं माना और वे अपने बेटे को नवजीवन देने की चाह में एमएमआई रायपुर ले गए थे, मगर डॉक्टरों के हाथ खड़े करने पर वर्गीस फैमिली ने थॉमस के बचने की उम्मीद छोड़ दी थी।

*ममता की मारी मां की सेवा लाई रंग*
रायपुर में सघन इलाज के 3 रोज के बाद थॉमस की हालत सुधरी तो रायगढ़ वापस आ गए। इस बीच मां सारम्मा ने बेटे थॉमस की दिनरात अथक सेवासुषुश्रा में कोई कसर नहीं छोड़ी तो परिवार ने भी खूब देखभाल की। सालभर के बाद थॉमस का चेकअप कराया गया तो पता चला कि इंफेक्शन हो चुका था, लिहाजा वेल्लूर के कृष्ण मेडिकल कॉलेज ले जाया गया तो डॉक्टर्स ने स्किल लेफ्ट बांड निकालते हुए 6 माह बाद दुबारा बुलाया। थॉमस फुल बेड रेस्ट में रहे कि खाना तक नहीं खा पा रहे थे। सिर से लेकर पांव तक शरीर का एकतरफ का हिस्सा सुन्न होने के कारण वे बिस्तर से गिरकर जमीन में बेबस पड़े रहते थे। ऐसे में तकलीफदेह हालात में जी रहे थॉमस की मां सारम्मा ने अथक सेवा करती रही और यह क्रम तब तक जारी रहा, जब तक बेटा स्वस्थ नहीं हुआ।

*केरल के आयुर्वेद शाला ने बदली जिंदगी*
आधे बेजान काया के साथ किसी तरह दिन काट रहे थॉमस को लाचारी से उबारने के लिए वर्गीस परिवार ने आयुर्वेद का सहारा लिया। थॉमस को केरल के आयुर्वेद शाला की शरण में ले जाया गया। यहां विशुद्ध देसी पद्धति से एक महीने तक थैरेपी तक दी गई। फिर भी अचानक तबियत खराब होने पर अमृता हॉस्पिटल भी ले जाना पड़ा। इस तरह काफी उपचार के बावजूद संघर्षपूर्ण दौर में थॉमस किसी तरह सम्हले और कुर्सी पकड़कर चलने लगे तो वर्गीस फैमिली की जान में जान आई।

*नशे से दूर रखने लोगों को करते हैं जागरूक*
Korba News: शराब और ड्रग्स के चक्कर में सेहत गंवा चुके थॉमस को अपनी करनी पर बेहद पछतावा है। बीते 16 बरस से कष्टप्रद हालात की मार झेल रहे थॉमस की दुनिया अब पूरी तरह बदल चुकी है। वे न केवल नशे से कोसो दूर रहते हैं, बल्कि कोई भी अजनबी अगर गुटखा खाते दिखता है तो थॉमस उसका पाऊच लूटकर फेक भी देते हैं। एक पुलिसकर्मी सड़क पर सिगरेट पी रहा था तो थॉमस ने जोरदार पकड़कर तबतक उसे नहीं छोड़ा, जबतक उसने सिगरेट नहीं फेंका। यही वजह है कि थॉमस के इस नशाबंदी मुहिम के चलते कई लोग सुधर भी गए हैं। बताते हैं कि नेकदिल थॉमस अपने दुकान को किराए पर देकर बदले में मिले रकम से जरूरतमंदों की मदद करते उनको नशा न करने की सलाह भी देते हैं।

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