Kawad Yatra 2025: 10 या 11 जुलाई जानिए कब से शुरू होगा कांवड़ यात्रा; जानिए डेट, टाइम और महत्व…

Kawad Yatra 2025 कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra 2025) एक धार्मिक यात्रा है जो सावन के महीने में शुरू होती है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव द्वारा विष पीने के बाद देवताओं ने उन पर गंगाजल डालकर विष के प्रभाव को कम किया था जिसके बाद से कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
हर वर्ष सावन मास में निकलने वाली पवित्र कांवड़ यात्रा 2025 की शुरुआत इस बार 11 जुलाई से होगी और 23 जुलाई को सावन शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक के साथ इसका समापन होगा। यह यात्रा भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत उदाहरण है, जिसमें लाखों शिवभक्त गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
कब से कब तक होगी यात्रा? (Kawad Yatra 2025 Start And End Date)
वैदिक पंचांग के पंचांग के अनुसार सावन महीने में कृष्ण पक्ष की शुरुआत 11 जुलाई 2025 (रात 2:06 बजे से प्रतिपदा तिथि) से होगी। वहीं इस यात्रा का समापन 23 जुलाई 2025 (सावन शिवरात्रि पर जलाभिषेक) के साथ होगा।
कांवड़ यात्रा कहां से शुरू और कहां खत्म होती है? (Kawad Yatra Starting and Ending point)
नर्मदा से महाकाल तक
नर्मदा से ओंकारेश्वर तक
शिप्रा से महाकाल तक
गंगाजल से नीलकंठ महादेव तक
गंगा से बैजनाथ धाम (बिहार) तक
गोदावरी से त्र्यंम्बकेश्वर तक
गंगा जी से केदारेश्वर तक
स्कूल में छुट्टी (Kawad Yatra 2025 School Holiday list)
कांवड़ यात्रा के 10 जुलाई या 11 जुलाई को चलते नोएडा, गाज़ियाबाद, हरिद्वार आदि क्षेत्रों में स्कूलों के बंद होने की संभावना है, परंतु इसकी आधिकारिक पुष्टि बाद में की जाएगी।
भारत में सबसे बड़ी कावड़ यात्रा कौन सी है? (Longest Kawad Yatra In India)
उत्तर भारत की सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा का आयोजन हरिद्वार से शुरू होता है। जिसमें भक्त उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान व हिमाचल प्रदेश से आते हैं और गंगाजल भर कर अपने घर ले जाते हैं। भक्तों की सुविधाजनक सफर के लिए दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग-58 पर यातायात नियंत्रण डाक कांवड़ की भीड़ और वैकल्पिक मार्गों की व्यवस्था को लेकर रणनीति बनाई गई। कांवड़ पटरी मार्ग और पार्किंग स्थलों की तैयारियों की भी समीक्षा की जा चुकी है।
क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व? (Kawad Yatra 2025 Significance)
Kawad Yatra 2025धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष निकला, तो भगवान शिव ने उसे पीकर सृष्टि की रक्षा की। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उनके ऊपर गंगाजल चढ़ाया। तभी से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जिसे हम कांवड़ यात्रा के रूप में जानते हैं।