स्वास्थ्य

पुरुषों में इतने साल की आयु के बीच भूलने की बीमारी का खतरा, इस उम्र में महिलाएं होती हैं इसका शिकार!

टाइप 2 डायबिटीज, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर (बीपी) और धूम्रपान जैसी आदतें पुरुषों में डिमेंशिया की शुरुआत महिलाओं की तुलना में लगभग 10 साल पहले कर सकती हैं. यह शोध जर्नल ऑफ न्यूरोलॉजी न्यूरोसर्जरी एंड साइकियाट्री में प्रकाशित हुआ है.

इन स्वास्थ्य समस्याओं के कारण पुरुषों में 50 से 70 वर्ष की आयु के बीच डिमेंशिया का खतरा अधिक होता है, जबकि महिलाओं में यह स्थिति 60 से 70 साल के बीच देखी जाती है. शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि इस समस्या का असर उन पुरुषों पर भी हो सकता है, जिनमें उच्च जोखिम वाला एपीओई4 जीन नहीं पाया जाता.

इन स्वास्थ्य समस्याओं के कारण पुरुषों में 50 से 70 वर्ष की आयु के बीच डिमेंशिया का खतरा अधिक होता है, जबकि महिलाओं में यह स्थिति 60 से 70 साल के बीच देखी जाती है. शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि इस समस्या का असर उन पुरुषों पर भी हो सकता है, जिनमें उच्च जोखिम वाला एपीओई4 जीन नहीं पाया जाता.

शोध के निष्कर्ष

ब्रिटेन के इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने एक दीर्घकालिक अध्ययन किया, जिसमें 34,425 प्रतिभागियों को शामिल किया गया. इन प्रतिभागियों ने पेट और मस्तिष्क दोनों का स्कैन कराया था, और उनकी औसत आयु 63 वर्ष थी. अध्ययन से पता चला कि पुरुषों और महिलाओं दोनों में पेट की चर्बी और आंतों के वसा ऊतकों (टिशू) का बढ़ा हुआ स्तर मस्तिष्क के ग्रे मैटर की मात्रा को कम करता है. यह विशेष रूप से ऑडिटोरी इंफॉर्मेशन, विजुअल परसेप्शन, इमोशनल प्रोसेसिंग और मेमोरी जैसे मस्तिष्क के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रभाव डालती है.

हार्ट और ब्रेन पर प्रभाव

शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्लड प्रेशर और मोटापे का ब्रेन पर हानिकारक प्रभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है, खासकर उन लोगों में जिनमें एपीओई4 जीन का उच्च जोखिम नहीं है. यह दर्शाता है कि कार्डियोवैस्कुलर रिस्क मस्तिष्क के सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है, जिससे डिमेंशिया और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों का खतरा बढ़ सकता है.

अल्जाइमर और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों की रोकथाम

शोध में यह भी सुझाव दिया गया है कि 55 वर्ष की आयु से पहले दिल संबंधी जोखिम कारकों पर ध्यान केंद्रित करना और उनका उपचार करना बहुत महत्वपूर्ण है. यह न केवल डिमेंशिया जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के खतरे को कम कर सकता है, बल्कि दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी अन्य हृदय संबंधी समस्याओं से भी बचा सकता है. शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि मोटापे और कार्डियोवैस्कुलर रिस्क फैक्टर को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि जीवन के बाद के वर्षों में मस्तिष्क और हृदय स्वास्थ्य में सुधार हो सके.

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