रायगढ़

एक बार बात कर लेते तो विचार बदल जाता,अगर संतुष्ट होगे तो कभी अवसाद नहीं होगा

RGHNEWS प्रशांत तिवारी रायगढ़।  आज विश्व आत्महत्या निरोधक दिवस है। आदिवासी क्षेत्र रायगढ़ सदैव से ही अपने देसी पन और कला-संस्कृति के कारण पूरे देश में जाना जाता है। बीते कुछ सालों में देखा गया है कि यहां पर आत्महत्या की दर में बढ़ोत्तरी हुई है। इस मामले में राज्य में दुर्ग, रायपुर और कोरबा के बाद चौथे नंबर पर रायगढ़ आता है।

मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश अजगल्ले बताते हैं कि आत्महत्या जैसी मानसिक बीमारी को रोका जा सकता है। हमें अपने आसपास के लोगों में अचानक से आए बर्तावों पर नज़र रखनी चाहिए और और उनसे बात करनी चाहिए। हमारी बाते और हमारा साथ कई लोगों की जिंदगियां बचा सकता है।

हमारे समाज में मानसिक रोग का हौव्वा बना दिया जाता है और इससे पीड़ित मारे शर्म के अंदर ही अंदर घुटता रहता है। जबकि मानसिक बीमारी सामान्य बीमारियों की तरह है। मनोचिकित्सक डॉ. अजगल्ले बताते हैं कि ईश्वर ने हमें एंटी डिप्रेशन दवा हमारे अंदर ही दी है जब हम व्यायाम और योग जैसे काम करते हैं तो यही दवा बाहर निकलती है इसे एनडोफॉर्म कहा जाता है।
हमारे लिए खुश रहना और संतुष्ट रहना बेहद जरूरी है क्योंकि इससे तनाव और अवसाद नहीं होते।

संजय से सीखें

25 साल के संजय (बदला हुआ नाम) को दो साल पहले बहुत बुरे ख्याल आते थे। कुछ नहीं करने की आदत हो गई थी। वो निर्णय भी नहीं ले पाते थे और खुद को आइसोलेट कर के रहते थे, कई बार उन्हें आत्महत्या करने का ख्याल आया। लेकिन आज वो सामान्य जीवन जी रहे हैं। वे दो साल तक जिला मानसिक परामर्श केंद्र में परामर्श के लिए आते रहे हैं और अलग-अलग सत्रों में उन्हें परामर्श दिया गया।
संजय बताते हैं कि अब वो खुद को बेहतर महसूस करते हैं पहले खुद की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए उन्हें आत्महत्या करने के ख्याल आते थे लेकिन आज वो दुनिया को एकदम अलग तरीके से देख रहे हैं। परेशानी थी तो सिर्फ जानकारी का अभाव और किसी से बात नहीं करने का रोड़ा था। बकौल संजय मैं कितना नासमझ था कि बस एक क्षण में ही अटक गया था। दुनिया में बस उस क्षण के अलावा सब कुछ बेहतर है। आत्महत्या का विचार ही खतरनाक है।

बीते महीने में हमारे पास 50 केस आए

धूप में खड़े रहने से कोरोना वायरस खत्म हो जाता है। भभूत लगाना या जड़ी बूटी कोरोना का इलाज है ऐसे सवाल लेकर परामर्श के लिए कई सारे लोग आए। जिला मानसिक स्वास्थ्य इकाई के काउंसलर पी अतीत राव बताते हैं कि सामान्य दिनों में जहां हमारे पास सलाह के लिए 25 से 30 कॉल या केस आते थे अब कोरोना काल में हर महीने 50 के करीब आते हैं। बीते महीने के 7 केस ज्यादा संवेदनशील थे। 2 लोगों में आत्महत्या करने की प्रबल प्रवृत्ति थी। हमारे सेशन और सलाह के बाद वे अब सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। कोरोना के इस समय में लोगों के मन में आत्महत्या करने के प्रति प्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी हुई। लेकिन हमारे गेट कीपर पूरे जिले में सक्रिय हैं।

3500 गेट कीपर पूरे जिले में तैनात

गेटकीपर यानी समुदाय के ही लोग जिन्हें जिला मानसिक स्वास्थ्य विभाग विशेष ट्रेनिंग देकर आत्महत्या की मनोवृत्ति या उसकी तरफ धीरे-धीरे बढ़ रहे लोगों को पहचान कर तुरंत सलाह या इलाज के लिए भेजता है। इन गेटकीपरों को आत्महत्या करने वालों के प्रारंभिक लक्षण, उनके व्यवहार में बदलाव आदि को पहचानने का प्रशिक्षण दिया गया है जिससे वो समय पर आत्महत्या की तरफ बढ़ने वालों की पहचान कर उसे रोक पाते हैं। शहरी क्षेत्र में 200 से ज्यादा गेटकीपर और पूरे जिले में 3500 से अधिक गेटकीपर सक्रिय हैं।

आप बात जरूर करें

मनोचिकित्सक डॉ. राजेश अजगल्ले कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति जो परेशान है उसे खुद की समस्या मानते हुए अपने ही अंदर न रखे ऐसे में वह स्वयं ही सभी निर्णय लेने लगता है और यहीं से बुरे ख्याल आने शुरू हो जाते हैं। आप अपने दोस्तों, परिजनों से जरूर बात करें। राहत मिलेगी। आत्महत्या से एक व्यक्ति नहीं मरता बल्कि कई लोगों की मौत होती है। परिवार टूट जाता है। इस कोरोना काल में जब लोगों की नौकरियां छूट रही हैं, लोग घर में रह रहे हैं और बच्चों का स्कूल-कॉलेज बंद है, सभी को एक-दूसरे का ख्याल रखना ही होगा।

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