Pm modi: मोदी के लिए अटल से भिड़ गए थे आडवाणी…जाने ये दिलचस्प कहानी

Pm modi: 3 फरवरी को खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा की। 96 साल के बीजेपी नेता आडवाणी ये सम्मान पाने वाले देश के 50वें व्यक्ति हैं। पीएम मोदी ने कहा कि वे हमारे समय के सबसे सम्मानित स्टेट्समैन हैं। देश का सर्वोच्च सम्मान दिए जाने की घोषणा के बाद से ही पीएम मोदी और आडवाणी के बीच के रिश्तों की चर्चा हो रही है।
12 अप्रैल 2002 की बात है। गुजरात दंगे के बाद गोवा में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी। इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को एक ही विमान से दिल्ली से गोवा जाना था। इन दोनों के साथ ही इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए विदेश मंत्री जसवंत सिंह भी जाने वाले थे।
पीएम के इस विमान के दिल्ली से उड़ान भरने के कुछ समय पहले विनिवेश मंत्री अरुण शौरी के पास पीएम के सुरक्षा सलाहाकार बृजेश मिश्रा का फोन आया।
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बृजेश मिश्रा ने शौरी से पूछा कि क्या आपने गोवा जाने का टिकट करवा लिया है? शौरी हां में सवाल का जवाब देते हैं… इसके बाद बृजेश मिश्रा ने शौरी से कहा कि आप अपना टिकट कैंसिल करवा लीजिए। आप पीएम और डिप्टी पीएम के साथ प्लेन में जाने वाले है। शौरी हैरान होकर इसकी वजह पूछते हैं।
बृजेश मिश्रा बताते हैं कि अगर आप साथ नहीं जाएंगे तो सफर के दौरान वाजपेयी जी और आडवाणी जी आपस में बिल्कुल बातचीत नहीं करेंगे। ये सुनते ही अरुण शौरी पूरे मामले को भांप जाते हैं। इसकी वजह यह थी कि शौरी दोनों नेताओं के बीच चल रही राजनीतिक तल्खी को जान रहे थे।
शौरी तय समय पर एयरपोर्ट पहुंचते है और प्रधानमंत्री को ले जाने वाले विशेष विमान में दाखिल होते है। दाखिल होते ही वे देखते हैं कि वाजपेयी, आडवाणी और जसवंत सिंह अपनी अपनी सीटों पर बैठे हैं। वाजपेयी विंडो सीट पर बैठे थे और किसी से बात किए बिना बाहर की ओर देख रहे थे।
प्लेन अपने तय समय पर टेकऑफ करता है। इसके बाद वाजपेयी सामने वाले टेबल पर रखे अखबार को उठाते हैं और पूरे पन्ने को खोलकर अपने चेहरे को ढंक लेते हैं, ताकि सामने बैठे आडवाणी से नजरें भी न मिल पाएं।
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इसके बाद आडवाणी भी इसी तरह एक अखबार उठाते हैं और पढ़ने लगते हैं। शौरी साफ देख पा रहे थे कि देश के दो बड़े नेता एक-दूसरे से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
शौरी को बृजेश मिश्रा की बात याद आती है और वे दोनों नेताओं के बीच की दूरी को कम करने की तरकीब सोचने लगते हैं। कुछ देर बाद अरुण शौरी वाजपेयी के हाथ से अखबार ले लेते हैं और कहते हैं कि – वाजपेयी जी, न्यूज पेपर तो बाद में भी पढ़ लीजिएगा… आप आडवाणी जी से जो कहना चाहते हैं, वो खुल के कह दीजिए…
शौरी के इस प्रयास से विमान के अंदर का माहौल थोड़ा हल्का होता है। इसके बाद वाजपेयी जी कहते हैं कि वे सिर्फ दो चीज चाहते हैं। पहली ये कि वेंकैया नायडू को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए और दूसरी ये कि नरेंद्र मोदी इस्तीफा दें।
आडवाणी तुरंत इस बात का विरोध करते हैं। हालांकि वाजपेयी ने मन बना लिया था कि गोवा पहुंचकर नरेंद्र मोदी से इस्तीफा लिया जाए। दिल्ली से गोवा जाने के दौरान हवा में अगले 120 मिनट तक यानी करीब दो घंटे चारों नेता इस मुद्दे पर बहस करते रहे। आखिर में कुछ देर के लिए वाजपेयी शांत हो गए, बाकी लोग भी शांत बैठे रहे। इस तरह पूरे विमान में शांति छा गई।
इस चुप्पी को खत्म करने के लिए जसवंत सिंह ने कुछ देर बाद अटल जी से सवाल किया कि आप क्या सोच रहे हैं? कुछ देर बाद अटल ने अपनी चुप्पी तोड़ी और जवाब दिया कि दंगे के बाद कम से कम वो इस्तीफा देने का ऑफर तो करते।
इस पर आडवाणी बोल पड़े कि अगर नरेंद्र मोदी के पद छोड़ने से गुजरात की स्थिति में कोई सुधार आता है तो मैं चाहूंगा कि नरेंद्र पद छोड़ दें, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है कि उनके पद छोड़ने से गुजरात की स्थिति में सुधार आएगा। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी इस बात को नहीं मानेगी।
हालांकि वाजपेयी मन बना चुके थे कि मोदी का इस्तीफा ले लिया जाएगा। विमान के लैंड होने से पहले ही मोदी के इस्तीफे की पृष्ठभूमि तैयार हो गई। गोवा में प्लेन की लैंडिंग के साथ मोदी को भी वाजपेयी जी की राय के बारे में बता दिया गया।
बैठक शुरू हुई और मोदी ने इस्तीफे का प्रस्ताव दिया…
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सारे नेताओं के बोलने के बाद मोदी उठे और बीते सालों में हुए दंगों के पीछे की ऐतिहासिक वजहें गिनाईं। अंत में मोदी ने कहा कि वे गुजरात में हुए कांड की जिम्मेदारी ले रहे हैं और इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं।
मोदी के इतना कहने के बाद बैठक में अलग-अलग राज्यों से आए बीजेपी के नेता शोर मचाने लगे और मोदी के इस्तीफे का विरोध करने लगे। इस्तीफा मत दो के नारों से मीटिंग हॉल गूंज उठा। बीजेपी नेता प्रमोद महाजन ने भी मोदी के इस्तीफे का विरोध किया।
वहां ये सबकुछ देखकर वाजपेयी हैरान रह गए। वाजपेयी इस राजनीतिक परिस्थिति में शायद खुद को कमजोर महसूस कर रहे थे। मामला बिगड़ते देख इसी समय शौरी ने माइक संभाला। उन्होंने कहा कि विमान में अटल जी और आडवाणी जी के बीच हुई चर्चा में नरेंद्र मोदी से इस्तीफा लिए जाने पर सहमति बनी है, लेकिन इसके बाद भी शोर नहीं रुका।
इस वक्त वाजपेयी कुछ समझ नहीं पा रहे थे। माहौल देखकर वाजपेयी ने कहा कि मोदी के इस्तीफे का फैसला बाद में लेंगे। इसके बाद भी मामला शांत नहीं हुआ। मंच के नीचे नेता मोदी के समर्थन में नारे लगाते रहे।
आडवाणी यह सबकुछ शांति से देख रहे थे। उन्होंने इस हंगामे के वक्त एक शब्द नहीं बोला और न ही उन्होंने इस हंगामे को रोकने की कोशिश की। वाजपेयी को पहली बार अपनी ही पार्टी के नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा था। अंत में वही हुआ जो लालकृष्ण आडवाणी चाहते थे और मोदी का इस्तीफा नहीं हुआ।
इस घटना के बाद राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा हुई कि मोदी के बचाव की यह पटकथा पार्टी के बड़े नेताओं ने आपस में मिलकर लिखी थी, जिसकी भनक वाजपेयी तक को नहीं लगी। इस राजनीतिक घटना से नरेंद्र मोदी की न सिर्फ सीएम की कुर्सी बची, बल्कि आगे चलकर वो देश के प्रधानमंत्री भी बने। अगर उस समय उनसे इस्तीफा ले लिया जाता तो शायद वे इस पद तक नहीं पहुंच पाते।
Pm modi इस घटना के 21 साल बाद अब नरेंद्र मोदी की सरकार ने लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का फैसला किया है। यही वजह है कि उनके राजनीतिक रिश्तों की चर्चा हो रही है।