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Pager Bomb: क्या है पेजर, कैसे हुआ इसका अविष्कार,कैसे हुए लेबनान में 3000 लोग घायल,जाने पूरी डिटेल्स

Pager Bomb लेबनान के कई शहरों में 18 सितंबर को घरों, सड़कों और बाजारों में लोगों की जेब और हाथ में रखे पेजर अचानक फटने लगे। यह सिलसिलेवार 1 घंटे तक लेबनान से लेकर सीरिया तक हुआ।

अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी और 3000 हजार से ज्यादा लोग जख्मी हो गए। टाइम्स ऑफ इजराइल ने पहले 4000 लोगों के घायल होने की खबर दी थी। अब इसे संशोधित कर लिया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये हिजबुल्लाह को निशाना बनाते हुए किए गए सीरियल पेजर ब्लास्ट थे, लेकिन इसमें आम लोग भी हताहत हुए। ईरानी राजदूत भी इसमें घायल हो गए। हिजबुल्लाह ने इजराइल पर धमाके कराने का आरोप लगाया है।

लेबनान के ज्यादातर इलाके में हिजबुल्लाह का कब्जा है। हिजबुल्लाह ने अपने लड़ाकों को हैकिंग और फिर हमलों के डर से मोबाइल फोन का इस्तेमाल ना करने को कहा है। इसी वजह से यहां के लोग पेजर का इस्तेमाल करते हैं।

ये पेजर आखिर है क्या, मोबाइल के दौर में हिजबुल्लाह इनका इस्तेमाल क्यों करता है और इनमें विस्फोट कैसे हुआ?

पेजर एक वायरलेस डिवाइस होता है, जिसे बीपर के नाम से भी जानते हैं। 1950 में पहली बार पेजर का इस्तेमाल न्यूयॉर्क सिटी में हुआ। तब 40 किलोमीटर की रेंज में इसके जरिए मैसेज भेजना संभव था। 1980 के दशक में इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में होने लगा।

2000 के बाद वॉकीटॉकी और मोबाइल फोन ने इसकी जगह ले ली। पेजर का स्क्रीन आमतौर पर छोटा होता है, जिसमें लिमिटेड कीपैड होते हैं। इसका इस्तेमाल दो तरह से मैसेज भेजने के लिए होता है- 1. वॉयस मैसेज 2. अल्फान्यूमेरिक मैसेज। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि लेबनान में जो पेजर्स विस्फोट हुए हैं वो अल्फान्यूमेरिक हैं।

पेजर्स से मैसेज भेजने के लिए रेडियो वेव का इस्तेमाल होता है। इसे बेस स्टेशन पर लगे ट्रांसमिटर के जरिए भेजा जाता है। एडवांस पेजर्स को फोन नंबर की तरह कोड नंबर दिए जाते हैं। उस कोड को डायल करने पर सिर्फ उसी पेजर में मैसेज ट्रांसफर होते हैं। यह बातचीत का बेहद सिक्योर मीडियम होता है, जिसे आसानी से कोई सुरक्षा एजेंसी ट्रेस नहीं कर सकती है। इस तरह के डिवाइस को ट्रेस करने के लिए उसकी रेंज में होना जरूरी है।

पेजर में न GPS होता है और न ही इसका IP एड्रेस होता है, जिससे इसे मोबाइल फोन की तरह ट्रेस किया जाए। पेजर का नंबर बदला जा सकता है, इसकी वजह से पेजर का पता लगाना आसान नहीं होता।

पेजर की खासियत है कि एक बार चार्ज होने पर ये एक सप्ताह से ज्यादा समय तक यूज किया जा सकता है, जबकि मोबाइल को एक या दो दिन में चार्ज करना होता है। यही वजह है कि इसे रिमोट लोकेशन यानी दूर-दराज इलाके में इस्तेमाल किया जाता है।

कब और किसने किया पेजर का अविष्कार?
पेजर का अविष्कार साल 1921 में ए एल ग्रॉस की ओर से किया गया था। हालांकि, पेजर का इस्तेमाल 1950 के बाद से शुरू हुआ। इसे पहली बार न्यूयॉर्क सिटी क्षेत्र के चिकित्सकों के लिए शुरू किया गया था। 1980 का दशक आते-आते इसे दुनियाभर में व्यापक स्तर पर इस्तेमाल किया जाने लगा। आपको बता दें कि पेजर का अविष्कार करने वाले ए एल ग्रॉस भी यहूदी ही थे। उन्होंने वॉकी-टॉकी और कोर्डलेस टेलिफोन का भी अविष्कार किया था।
कैसे काम करता है पेजर?
पेजर रेडियो फ्रीक्वेंसी की मदद से अपना काम करता है। इसमें इंटरनेट या कॉलिंग या फिर मोबाइल नेटवर्क की जरूरत नहीं होती। एक पेजर डिवाइस मैसेज भेजता है और दूसरा उसे रिसिव करता है। मुख्य रूप से बात करें तो पेजर तीन तरह के हैं।

वन वे पेजर: इस तरह के पेजर से केवल मैसेज को रिसिव किया जा सकता है।
टू वे पेजर: इस तरह के पेजर से मैसेज भेजा और रिसिव दोनों ही काम किया जा सकता है।
वॉयस पेजर: इस पेजर में लोग अपनी आवाज भी रिकॉर्ड कर सकते हैं।
पेजर से हिजबुल्लाह क्या करता था?
दरअसल, हिजबुल्लाह को शक था कि उसके कम्युनिकेशन नेटवर्क के कुछ लोगों को इजरायल ने खरीद लिया है। इसी के बाद इस संगठन में इंटरनल कम्युनिकेशन के लिए मोबाइल को बैन कर दिया गया था। किसी भी काम के लिए हिजबुल्लाह के मेंबर पेजर से कम्युनिकेट करते थे।

बड़ा सवाल- क्या पेजर हैक हो सकता है?
Pager Bomb हिजबुल्लाह को शक है कि इजरायल ने किसी मालवेयर की मदद से उनके पेजर में ब्लास्ट करवाए हैं। तो अब सवाल ये उठता है कि क्या पेजर को हैक किया जा सकता है? अगर संवेदनशील जानकारी साझा करने की बात की जाए तो पेजर को फुल प्रूफ नहीं माना जा सकता। अगर पेजर के रेडियो सिग्नल को इंटरसेप्ट कर लिया जाए तो इसे आसानी से हैक किया जा सकता है। पेजर में कोई भी एन्क्रिप्शन नहीं होता जो कि इसे और कमजोर बनाता है।

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