चैत्र नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की होती है पूजा, जानिए पूजन की विधि…

रायपुर न्यूज: माँ दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा – स्थिरता और सुमंगल.
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
चैत्र नवरात्र आरंभ होने से पहला दिन कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है. पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है. शैलपुत्री अर्थात पहाड़, पत्थर मतलब स्थिरता व पवित्रता. जीवन में स्थिरता तभी आता है, जब वह संपूर्ण होता है यानी स्वस्थ, सुखी और खशुहाल. स्वास्थ्य ही नहीं, अगर करियर भी अस्थिरता झेल रहा है, तो शांत नहीं हुआ जा सकता है. बात चाहे, करियर की हो, प्रेम संबंधो की हो या स्वास्थ की, अगर आपके संबंध खोखले हो गए हैं या उनमें पहले की तरह उत्साह नहीं रहा है, या स्वस्थ खराब हो गया है. अथवा सब होते हुए सुख की अनुभूति न रह जाए तो हिमालय जैसा शांत और स्थिर रहना मुश्किल है.
स्थिर स्वभाव वाला व्यक्ति सतोगुण से जुड़ा होता है, वह क्षण भंगुर तुच्छ पदार्थों से झुठी प्रशंसा में विश्वास नहीं रखता. अस्थिर स्वभाव का व्यक्ति तमो गुण से युक्त होता है, ऐसे व्यक्ति को तुच्छ पदार्थों की लोलुपता, झुठी प्रशंसा अत्यधिक प्रिय होती है. इस दुष्प्रव्रत्ति के दुष्प्रभाव के कारण उन्हें जीवन में कई बार परोक्ष-अपरोक्ष रुप से हानिया उठानी पड़ती है. परन्तु वे स्वंय के स्वभाव के बारे में चिंतन करने के बजाय परिस्थितियों को तथा दूसरों को दोष देते है. स्थिर स्वभाव, सन्तुलित व्यवहार के धनी लोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाते हैं. स्थिर स्वभाव, सन्तुलित व्यवहार की प्राप्ति कैसे हो? जीवन में सात्विकता सच्चे अर्थों में अध्यात्म धारण करने वाले व्यक्ति को स्वभाव में स्थिरता प्राप्त हो सकती है. स्वभाव में स्थिरता के कारण जीवन के बहुआयामी क्षेत्र में प्रगति होती रहती है. इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने स्वभाव में स्थिरता और व्यवहार में संतुलन रखे और इसके लिए आज मां शैलपुत्री की पूजा और आराधना करें. मां शैलपुत्री की आराधना से स्थिरता और शुद्धता प्राप्त किया जा सकता है.
पूजन विधि इस प्रकार है
सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें. उसी चौकी पर श्री गणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें. इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें. इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्धय, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें. तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें.
हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है. अत: नवरात्रि के पहले दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए. शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है. हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा है. उनकी पूजा से जीवन में श्रेष्ठता, स्थिरता और सुमंगल होता है.



