Edible Oil: सरसों सहित सभी तरह के खाने वाले तेल हुए सस्ते…..

आयातित खाद्य तेलों के दाम टूटकर लगभग आधे रह जाने के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहन में चौतरफा गिरावट देखने को मिली. बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों से देश का बाजार अटा पड़ा है और अगर यही दशा बनी रही तो देश में हाल की पैदावार वाले सोयाबीन और आगामी सरसों की फसल किसी भी तरह खप नहीं पाएगी. यह स्थिति देश के तेल-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने प्रयासों के प्रतिकूल है.
सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में जो कोटा प्रणाली के तहत शुल्क-मुक्त आयात के आर्डर दिए गए हैं, उस सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के भाव घटकर 100 रुपये प्रति लीटर (प्रसंस्करण के बाद थोक भाव) के आसपास रह गये हैं. सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के भाव में बहुत मामूली सा अंतर है. छह महीने पहले जिस सूरजमुखी तेल का भाव 200 रुपये प्रति लीटर के आसपास था वह पिछले दो-चार दिन में घटकर 100 रुपये प्रति लीटर के आसपास रह गया है.
125 लाख टन की संभावित पैदावार की खपत कहां हो पाएगी
सूत्रों ने कहा कि सरसों में लगभग 40-42 प्रतिशत तेल निकलता है और सस्ते आयातित तेलों से बाजार पटा रहा तो इस बार सरसों के लगभग 125 लाख टन की संभावित पैदावार की खपत कहां हो पाएगी. यह एक विडंबना है कि जो देश खाद्य तेलों की अपनी जरूरत के लिए 60 प्रतिशत आयात पर निर्भर हो, वहां देशी तेल-तिलहनों के स्टॉक बाजार में खपे नहीं. दूसरी ओर तेल कीमतें सस्ती होने पर खल कीमतें महंगी हो जाती हैं क्योंकि तेल कारोबारी तेल के घाटे को पूरा करने के लिए खल के दाम को बढ़ाकर पूरा करते हैं. खल, डीआयल्ड केक (डीओसी) के महंगा होने से पशु आहार महंगे होगा और दूध, दुग्ध उत्पादों के दाम बढ़ेंगे और अंडे, चिकन महंगे होंगे.
निर्धारण से निष्प्रभावी हो गई है
सूत्रों ने कहा कि मौजूदा वर्ष में सरकार ने सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को भी पहले 5,000 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,400 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. सूत्रों के मुताबिक, सस्ते आयातित तेलों का मौजूदा हाल बना रहा तो सरसों की खपत नहीं हो पाएगी और सरसों एवं सोयाबीन तिलहन का स्टॉक बचा रह जाएगा. सूत्रों ने कहा कि सरकार को शुल्कमुक्त आयात की कोटा प्रणाली से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए क्योंकि इसका कोई औचित्य नहीं है. जब इस व्यवस्था को लागू किया गया था तब खाद्य तेलों के दाम टूट रहे थे. लेकिन इस व्यवस्था से जो खाद्य तेल कीमतों में नरमी आने की अपेक्षा की जा रही थी वह अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के मनमाने निर्धारण से निष्प्रभावी हो गई है.
सूत्रों के मुताबिक, सरकार सभी खाद्य तेल उत्पादक कंपनियों को अपने एमआरपी को सरकारी वेबसाइट पर खुलासा करना अनिवार्य कर दे. इससे तेल कंपनियों और छोटे पैकरों की मनमानी पर अंकुश लगने की संभावना है. संभवत: इसी वजह से वैश्विक तेल कीमतों के दाम लगभग आधे रह जाने के बावजूद उपभोक्ताओं को ये तेल ऊंचे भाव पर खरीदना पड़ रहा है. सूत्रों ने कहा कि थोक बिक्री में दाम टूटने के बाद खुदरा बाजार में एमआरपी अधिक निर्धारित होने से ग्राहकों को खाद्य तेल कीमतों की आई गिरावट का लाभ नहीं मिल रहा है.



