कृषि समाचार
बारिश में बोई जाने वाली मक्का की ये किस्म उगायेगी ट्रेक्टर भर-भर के माल,बस फॉलो करे ये तरीका
बारिश में बोई जाने वाली मक्का की ये किस्म उगायेगी ट्रेक्टर भर-भर के माल,बस फॉलो करे ये तरीका आइये आज हम आपको बट्टे है बारीश में मक्के की खेती किस प्रकार की जाती है और किस प्रकार इनकी देखभाल की जाती है जिससे किसानो को बेहद लाभ पहुंचने वाला है तो बने रहिये अंत तक देते है शानदार डिटेल-
बारिश में बोई जाने वाली मक्का की ये किस्म उगायेगी ट्रेक्टर भर-भर के माल,बस फॉलो करे ये तरीका
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लेकिन कई बार सही मौसम और मिट्टी के हिसाब से उन्नत किस्मों का चुनाव न कर पाने के कारण किसानों को सही पैदावार नहीं मिल पाती.इसलिए ज़रूरी है कि किसान सही किस्मों का चुनाव करें.अच्छी बात ये है कि किसान साल में तीन बार मक्का की खेती कर सकते हैं.खरीफ सीजन में जून से जुलाई,रबी सीजन में अक्टूबर से नवंबर और ज़ायद सीजन में मार्च से अप्रैल तक मक्का बोई जा सकती है!
ये वेरायटी देगी बम्फर पैदावार
- पार्वती वैरायटी: इस किस्म के बीज बोने के 100 से 115 दिन बाद पौधे पककर तैयार हो जाते हैं.इसकी ख़ासियत है कि एक पौधे में 2 से 3 मक्के की बालियां निकलती हैं. दाने का रंग नारंगी और पीला होता है और बीज सख़्त होता है.एक एकड़ में इसकी खेती करने पर 13 से 15 क्विंटल तक की पैदावार होती है.
- प्रकाश जे.एच. 3189: यह उन्नत किस्म पूरे भारत में बोई जाती है.इसकी ख़ासियत है कि यह जल्दी पकने वाली किस्म है. बीज बोने के 80 से 90 दिन बाद ही यह तैयार हो जाती है. एक एकड़ में इसकी खेती करने पर 26 से 32 क्विंटल तक की पैदावार हो सकती है.
- 1174 (डब्ल्यू.वी): यह भी उन्नत किस्म है जिसके बीज बोने के 85 से 90 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं.दानों का रंग पीला-नारंगी होता है.एक हेक्टेयर ज़मीन में इसकी खेती करने पर 30 से 35 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है.
- मक्का की शक्ति-1: यह किस्म खाने के लिए ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है.इसलिए इसकी देश में बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. इसकी खेती करने पर 90 से 95 दिन बाद पौधे पककर तैयार हो जाते हैं और एक हेक्टेयर ज़मीन से 56 से 62 क्विंटल तक की पैदावार होती है.
- पूसा हाइब्रिड-1: यह किस्म ख़ासकर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों के किसानों के बीच ज़्यादा लोकप्रिय है.बीज बोने के 75 से 80 दिन बाद ही यह तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर ज़मीन से 55 से 65 क्विंटल तक की पैदावार देती है.