Ankita Murder Case: बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में अदालत ने सुना दी सजा, तीनों दोषियों को मिला आजीवन कारावास की सजा…

Ankita Murder Case उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में अदालत नेअपना फैसला सुना दिया है. कोटद्वार की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ती अदालत ने फैसला सुनाते हुए तीनों आरोपी सौरभ भास्कर, पुलकित आर्य और अंकित गुप्ता को दोषी करार दिया है. तीनों को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है. इस मामले में आईपीसी की अलग अलग धाराओं के तहत उम्रकैद और जुर्माने की सजा सुनाई गई है. इसके अलावा पीड़ित परिवार के लिए 4 लाख रुपये मुआवजा देने का भी ऐलान किया गया है. चलिए जानें कि आखिर उम्रकैद और आजीवन कारावास में क्या अंतर है और दोनों में कितनी सजा मिलती है
उम्रकैद और आजीवन कारावास में अंतर
अंकिता भंडारी हत्याकांड में तीनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा मिली है. ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर उम्रकैद और आजीवन कारावास में फर्क क्या है. दरअसल उम्रकैद और आजीवन कारावास में कोई फर्क नहीं होता है. आजीवन कारावास और उम्रकैद दोनों का अंग्रेजी में अर्थ होता है लाइफ इंप्रिजनमेंट यानि कि इनमें जिंदगी भर जेल में रहना पड़ता है. भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 103 (1) के तहत अगर कोई अपराधी हत्या करता है तो उसे इसके तहत उम्रकैद की सजा मिलती है.
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कितने साल जेल में रहना होता है
कई लोगों को यह गलतफहमी होती है कि उम्रकैद में 14 साल से लेकर 20 साल तक की सजा मिलती है और फिर अपराधी को जेल से रिहा कर दिया जाता है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है. इस कानून के अनुसार उम्रकैद का मतलब जिंदगी भर जेल में रहना होता है. लेकिन अगर कोई कैदी अच्छा व्यवहार करता है तो जेल प्रशासन उसे पहले भी रिहा कर सकता है. इस दौरान कानून के नियमों का पालन करते हुए उसकी सजा में रियायत बरती जाती है. लेकिन यह भी देखा जाता है कि अपराध किस तरह का है. अगर देशद्रोह या कोई जघन्य अपराध होता है तो उस केस में सजा को माफ नहीं किया जाता है.
14 से 20 साल का क्या है नियम
Ankita Murder Caseअदालत का काम सजा सुनाना होता है, लेकिन सजा को एक्जीक्यूट करना राज्य सरकार के हाथ में होता है. राज्य सरकार को यह अधिकार होता है कि वह कैदी की सजा को माफ कर सकता है या फिर कम कर सकता है. लेकिन जब मामला उम्रकैद का होता है तो राज्य सरकारें अपने विवेक के अनुसार 14 साल के बाद कैदी को रिहा कर सकती हैं, इस बिना पर कि अगर उसके आचरण में सुधार आया है तब. लेकिन उसे कम से कम 14 साल तो जेल में ही रहना पड़ता है. लेकिन यह राज्य सरकार के हाथ में होता है कि वह उम्रकैद की सजा पाए दोषी को 14 साल जेल में रखे या फिर 20 साल या आखिरी सांस तक. लेकिन यहां भी वही नियम लागू होता है कि देशद्रोह या जघन्य अपराध के मामले में सजा कम या माफ नहीं की जाती है.