टेक्नोलोजी

भारत ने बनाया सबसे ताकतवर Cryogenic engine

 CRYOGENIC ENGINE:बात 1993 की है। जब अमेरिका के धमकाने पर रूस समेत कुछ ताकतवर देश भारत को क्रायोजेनिक इंजन की टेक्निक देने से पीछे हट गए। लेकिन इन ताकतवर देशों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए भारत ने कुछ सालों की मेहनत के बाद खुद का क्रायोजेनिक इंजन विकसित कर लिया।

अब 9 नवंबर को इंडियन स्पेस एंड रिसर्च आर्गेनाइजेशन यानी ISRO ने अपने सबसे ताकतवर CE20 क्रायोजेनिक इंजन का सफल टेस्ट करते हुए इस टेक्निक में एक नई ऊंचाई हासिल करने में कामयाबी पाई है।

भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि क्या है ISRO का ताकतवर CE20 क्रायोजेनिक इंजन, क्या है इसकी खासियत? इससे कैसे भारत को होगा फायदा?

ISRO ने 9 नवंबर को CE20 क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक हॉट टेस्ट किया है। CE20 क्रायोजेनिक इंजन को देश में ही बनाया गया है। क्रायोजेनिक इंजन को भारत के सबसे ताकतवर रॉकेट LVM3 के लिए बनाया गया है।

ISRO का कहना है कि इस टेस्ट के दौरान इंजन ने पहले 40 सेकेंड में 20 टन के थ्रस्ट लेवल यानी धक्के के साथ काम किया, इसके बाद थ्रस्ट कंट्रोल वॉल्व को मूव करके थ्रस्ट लेवल को 21.8 टन तक बढ़ाया गया। सभी मामलों में इंजन कामयाब रहा।

21.8 टन थ्रस्ट का मतलब है कि ये इंजन रॉकेट के वजन समेत 21.8 टन यानी करीब 22 हजार किलो वजन को लिफ्ट कर सकता है।

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क्रायोजेनिक इंजन होता क्या है

रॉकेट से सैटेलाइट की लॉन्चिंग के लिए रॉकेट कई स्टेज से गुजरते हैं। आमतौर पर सैटेलाइट लॉन्च करने तक रॉकेट इंजन तीन प्रमुख स्टेज से गुजरते हैं।

पहले स्टेज में इंजन में सॉलिड रॉकेट बूस्टर्स का इस्तेमाल होता है। इसमें इंजन में सॉलिड फ्यूल होता है। इस स्टेज के बाद जब सॉलिड फ्यूल जलकर रॉकेट को आगे बढ़ाता है तो ये हिस्सा रॉकेट से अलग होकर गिर जाता है।

 CRYOGENIC ENGINE:दूसरे स्टेज में लिक्विड फ्यूल इंजन का इस्तेमाल होता है। लिक्विड फ्यूल के जलने यानी दूसरा स्टेज पूरा होते ही ये हिस्सा भी रॉकेट से अलग हो जाता है।

तीसरे और आखिरी स्टेज में क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल होता है, जो स्पेस में काम करता है। इसे क्रायोजेनिक स्टेज भी कहते हैं। क्रायो शब्द का मतलब होता है बेहद कम तापमान। यानी ऐसा इंजन जोकि बेहद कम तापमान पर काम करे उसे क्रायोजेनिक इंजन कहते हैं।

क्रायोजेनिक इंजन में फ्यूल के रूप में लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हाइड्रो का इस्तेमाल होता है। इसे क्रमश: -183 डिग्री और -253 डिग्री सेंटीग्रेड पर स्टोर किया जाता है। इन गैसों को लिक्विड में बदलकर उन्हें जीरो से भी कम तापमान पर स्टोर किया जाता है।

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