Raigarh News किलिमंजारो माउन्ट फतह करेगी रायगढ़ की बेटी पर्वतारोही याशी जैन को जे एस पी फाउंडेशन ने दी शुभकामना

Raigarh News रायगढ़ / छत्तीसगढ़ की गौरव व रायगढ़ की बेटी पर्वतारोही याशी जैन एक बार फिर पर्वतारोहण अभियान के लिए
जा रही है। इस बार छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करने याशी पर्वतारोहण के किये अफ्रीका महाद्वीप के सबसे ऊँचे
पर्वत माउन्ट किलिमंजारो को अपने अभियान के लिए चुना है। जिसकी ऊंचाई 5895 मीटर है और यह अफ्रीका के
तंजानिया देश में स्थित है। याशी को इस अभियान की सफलता के लिए जे एस पी फाउंडेशन ने शुभकामनायें दी
है।
जे एस पी फाउंडेशन द्वारा खेलों और खिलाडियों को प्रोत्साहित करने के लिए समय समय पर विभिन्न आयोजन
किये जाते रहे हैं। इसी श्रंखला में इस अभियान में रवाना होने से पहले आज सयंत्र पहुंची याशी जैन को जे एस पी
के सयंत्र प्रमुख आर के अजमेरिया ने तिरंगा सौंपते हुए सफलता के लिए शुभकामनायें दी और विश्वास जताया
की जल्द ही याशी माउन्ट किलिमंजारो पर तिरंगा लहराने में सफल होंगी। इस अवसर पर मानव संसाधन
विभाग के कार्यकारी उपाध्यक्ष जेर्राड रोड्रिक्स ने बधाई देते हुए शुभकामनायें दी। शुभकामनायें देते हुए विश्वास
जताया की जल्द ही याशी माउन्ट किलिमंजारो पर तिरंगा लहराने में सफल होंगी। याशी राजधानी दिल्ली होते
हुए पहले इथोपिया से तन्जानिया पहुंचेंगी जंहा से उसकी पर्वतारोहण की यात्रा की शुरुआत होगी जिसको वे
आगामी 8 दिनों में पूरा करने की कोशिश करेंगी।
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Raigarh News उल्लेखनीय है की कम्प्यूटर साइंस में बी टेक छत्तीसगढ़ की पर्वतारोही याशी जैन हिमालयन माउंटेनियरिंग
इंस्टीयूट व उत्तर कशी के नेहरू माउंटेनियरिंग इंस्टीयूट से कोर्स करने के उपरांत दिसंबर 2017 में एवरेस्ट बेस
केम्प { 17600 फीट } काला पत्थर { 18510 फीट } व मई 2018 में भी माउंट जोगिन तथा 2019 में यूरोप की
सबसे ऊँची चोटी एल्ब्रस फ़तेह कर चुकी है। जे एस पी फाउंडेशन के सामुदायिक विकास कार्यक्रमों से प्रभावित
होकर निरंतर सामाजिक कार्यों में अपनी अहम् जिम्मेदारी निभाती आई हैं और दृढ निश्चय ,मेहनत व लगन से
आज अपना अलग मुकाम हासिल कर लिया है। पूर्व में 11 जनवरी 2020 को नेपाल के माउन्ट आइस लैंड पिक
पर तिरंगा लहराने के साथ बेटी बचाओ का सन्देश देते हुए जिंदल पैंथर का परचम भी लहराया था। इसके
अलावा वर्ष 2021 में माउंट एवरेस्ट जंहा कैम्प 04 तक लगभग 8000 मीटर की ऊंचाई तक पहुँच
गई थी पर ख़राब मौसम के कारण 8oo मीटर ऊंचाई की दुरी से लौटना पड़ा था।