रायगढ़

*✍️लैलूंगा के तत्कालीन रेंजर लदेर की हत्या के सातों आरोपी बाइज्जत बरी,किन-किन खास बिंदुओं पर पुलिस की विवेचना में रह गई चूक✍️*

बचाव पक्ष के अधिवक्ता अम्बिका मौर्य ने अपने चातुर्यपूर्ण और उम्दा बहस करते हुए आरोपियों को गंभीर मामले से कराया दोषमुक्त
RGH NEWS प्रशांत तिवारी रायगढ़। वन विभाग के रेंजर लदेर की हत्या के बहुचर्चित मामले में रायगढ़ के विशेष न्यायालय में सभी सातों आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया है। इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि पर जाएं तो नतीजा यह निकलता है कि पुलिस की बेहद कमजोर विवेचना का लाभ आरोपियों को मिल गया जिसकी वजह से न्यायालय ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त करने का आदेश दे दिया है।
लैलूंगा रेंज में पदस्थ रेंजर डीआर लदेर की हत्या फरवरी 2017 में सरकारी आवास स्थल के बाहर जघन्य तरीके से की गई थी। इस मामले में लैलूंगा क्षेत्र के 7 व्यक्तियों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। यह मामला जब रायगढ़ न्यायालय में आया तो शासन और बचाव पक्ष के वकीलों के बीच जमकर बहस हुई। पुलिस की ओर से इस मामले में जैसी विवेचना की गई थी उसके आधार पर शासन पक्ष के अधिवक्ता ने पैरवी की लेकिन, पुलिस की ओर से इस घटना के कई पहलुओं को लापरवाही पूर्वक नजरअंदाज करते हुए बेहद कमजोर विवेचना की। ऐसे में शासन पक्ष पर बचाव पक्ष के अधिवक्ता भारी पड़े और तथ्यों की कड़ियों को आपस में काफी प्रयास के बावजूद भी नहीं जोड़ा जा सका। ऐसे में रायगढ़ के विशेष न्यायाधीश गिरजा देवी मेरावी के न्यायालय ने सभी सातों आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया।
किन-किन खास बिंदुओं पर पुलिस की विवेचना में रह गई चूक
इस पूरे मामले में कुछ ऐसे तथ्य अछूते रह गए और कुछ के तार पूरे घटनाक्रम से नहीं जुड़ सकें कि जिसका लाभ आरोपियों को न्यायालय में मिल गया। ऐसे कुछ खास तथ्यों के बारे में हम आपको बताते हैं-
कोल तस्करों से भी हुई थी रेंजर लेदर की झड़प, लेकिन पुलिस ने नहीं कि इस दिशा में कोई जांच
जब यह मामला न्यायालय में आया तो यहां पर पुलिस की ओर से की गई विवेचना पर दोनों पक्षों में बहस छिड़ी। इस दौरान यह तथ्य निकलकर आए कि रेंजर लदेर ने लैलूंगा क्षेत्र के बहुचर्चित कोल तस्करी क्षेत्र मडियाकछार में कोल तस्करों के सरगना के कब्जे से भारी मात्रा में बरामद कोयले को जलाया था। जिससे कोल तस्करों और रेंजर लदेर के बीच काफी नोकझोंक होने की बात सामने आई थी। लेकिन पुलिस की ओर से इस दिशा में कोई जांच ही नहीं की गई कि क्या कोल तस्करों ने रेंजर लदेर की हत्या की है।
वारदात के कुछ घंटों पहले मोहसीन और एक अन्य लदेर के घर में क्या कर रहे थे
पुलिस ने अपने विवेचना में रेंजर लदेर के घर में घटना दिनांक को आखरी वक्त अर्थात शाम को जब आरोपी गण रेंजर के पास अपना ट्रैक्टर छुड़ाने आए थे। तब वह क्या कर रहे थे और उनके बीच क्या चर्चा हुई । पुलिस ने उन दोनों महत्वपूर्ण व्यक्तियों को अपने विवेचना में शामिल ही नहीं किया और ना ही न्यायालय में उनका बयान कराया गया। आखिर उन दोनों ने वहां पर क्या देखा। बताया जा रहा है कि मोहसिन पत्रकार है। ऐसे में क्या पत्रकार से कोल तस्करों और इस मामले के आरोपियों के बारे में रेंजर लदेर ने कुछ बताया। और इस घटना के उपरांत भी क्या पत्रकार ने उस घटना का उल्लेख मीडिया में किया कि नहीं। पुलिस ने इस अहम तथ्य को लापरवाही पूर्वक नजरअंदाज कर दिया और यह कड़ी बचाव पक्ष के अधिवक्ता के लिए काफी अहम थी। जिस पर बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने शासन पक्ष को घेर लिया।
कपड़ों और हथियारों में मिले खून के धब्बे किस व्यक्ति के थे यह विवेचना में नहीं आ सका
बताया जा रहा है कि पुलिस ने किस प्रकार की कमजोर विवेचना की है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस ने हथियार और आरोपियों के कपड़ों की जो बरामदगी की उनमें खून के निशान तो थे लेकिन , किसके खून के निशान थे इसकी जांच ही नहीं कराई गई। फॉरेंसिक जांच में केवल मानव रक्त की बात सामने आई लेकिन, यह मानव रक्त किस मानव का है यह नहीं बताया जा सका। ऐसे में बचाव पक्ष के अधिवक्ता अम्बिका प्रसाद मौर्य ने इस कमजोर तथ्य का फायदा उठाते हुए पूरी जब्ती की कार्रवाई को संदेहास्पद बताया।
रेंजर लदेर किस समय घर के बाहर टहलते हैं इस बात की जानकारी केवल 2 लोगों को थी
न्यायालय में घटनाक्रम और तथ्यों पर बहस के दौरान यह बात सामने आई कि रेंजर लदेर अपने घर के बाहर किस समय से किस समय तक टहलते हैं। उसकी जानकारी सिर्फ उनकी पत्नी एवं एक डिप्टी रेंजर को थी। ऐसे में आरोपियों को इस बात का पता कैसे चल गया कि रेंजर लदेर अपने तय समय पर घर के बाहर टहलने के लिए निकलेंगे और उस वक्त उनकी हत्या की जा सकती है। क्या यह भी हो सकता है कि जिन दो व्यक्तियों को रेंजर के टहलने का वक्त पता था उनकी ओर से इस घटना को अंजाम दिया गया।
जिस ट्रैक्टर को लदेर ने पकड़ा उसके चालक को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया
पूरे घटनाक्रम में यह बात भी सामने आई कि यदि किसी ट्रैक्टर की जब्ती बनाई गई तो ट्रैक्टर के चालक को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया। रेंजर ने ट्रैक्टर के मालिक को आरोपी बनाया और ट्रैक्टर जप्त कर लिया। इस बात की चर्चा भी उसने अपने अधीनस्थ और वरिष्ठ अधिकारियों से जरूर की होगी। ऐसे में उन लोगों का बयान इस संबंध में क्यों नहीं कराया गया।
डिप्टी रेंजर और एसडीओ के बयान में विरोधाभास
पुलिस की विवेचना में यह तथ्य आया है कि डिप्टी रेंजर ने सबसे पहले रेंजर की लाश को देखा और उसने थाने पहुंचकर इस घटना की सूचना दी। साथ ही उसने अपने एक अन्य साथी को फोन पर जानकारी देते हुए अपने वरिष्ठ अधिकारी एसडीओ को भी घटना की जानकारी देने के लिए कहा। जो घटना हुई है वह लैलूंगा थाने के पीछे है ऐसे में गांव से सात आरोपी इस घटना को अंजाम देने के लिए कैसे छिपकर बैठे रह सकते हैं और उन्हें उस टाइम की जानकारी कैसे हो गई कि लदेर उस वक्त निकल कर उनके पास आ जाएंगे। साथ ही घटनास्थल के पास में ही वन विभाग के एसडीओ का भी निवास स्थल है। ऐसे में घटना के कई घंटे बाद उन्हें इस घटना की जानकारी कैसे हुई इन सब बातों तथ्यों और बयानों में विरोधाभास पाया गया।
पुलिस की कहानी का मृतक की पत्नी के बयान से नहीं मिला पूरा समर्थन
पुलिस की ओर से विवेचना में जो तथ्य और इस घटना की अहम गवाह मृतक की पत्नी से पूछताछ की और जो उसका बयान लिया गया वह बयान न्यायालय में पुलिस की कहानी से मेल खाता नहीं दिखा। जिसका फायदा आरोपी पक्ष को बड़े पैमाने पर हुआ।
पुलिस की विवेचना में घटनाक्रम के आपस में नहीं जुड़े तार, खंडित विवेचना ने आरोपियों को पहुंचाया लाभ
 
हम यह लाभ भी नहीं कह रहे हैं कि पुलिस ने किसी लालच में आकर इस महत्वपूर्ण मामले की विवेचना बेहतर तरीके से नहीं की बल्कि, यह है कि जिस स्तर की विवेचना इस मामले में होनी थी शायद पुलिस की ओर से उस स्तर की विवेचना गंभीरता से नहीं की गई। बहस के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि पुलिस ने घटना के तुरंत बाद FIR किया जिसमें सभी आरोपी नामजद थे। आरोपियों के नाम डिप्टी रेंजर की ओर से पुलिस को बताया गया और पुलिस ने उन्हीं नामों को शामिल करते हुए 7 व्यक्तियों को आरोपी बना दिया। जबकि न्यायालय में साक्ष्य के दौरान उस डिप्टी रेंजर में यह स्वीकार किया कि वह आरोपियों को घटना के पूर्व किसी का नाम नहीं जानता था। केवल डिप्टी रेंजर के नाम बताने के आधार पर पुलिस ने इन्हीं आरोपियों पर पूरे केस को टिका दिया। जबकि मड़ीयाकछार में खतरनाक कोल तस्करों से हुई झड़प के संबंध में कोई जांच ही नहीं की। जबकि इसी प्रकार के दूसरे झड़प जो ट्रैक्टर मालिक के साथ हुई उस पर पूरी कहानी बनाते हुए मामले को न्यायालय में भेज दिया।
क्या था पूरा मामला
लैलूंगा रेंज के प्रभारी अधिकारी डी आर लदेर ने फरवरी 2017 में अवैध उत्खनन एवं परिवहन में संलिप्त ट्रैक्टर को जप्त किया था। ऐसे में वाहन के जप्त होने के बाद वाहन के स्वामी अपने छह अन्य साथियों के साथ रेंजर के घर पहुंचा। जहां पहले से ही रेंजर के अलावा दो डिप्टी रेंजर मौजूद थे। उनकी मौजूदगी में ही ट्रैक्टर को छुड़ाने के लिए ट्रैक्टर मालिक और उसके साथियों ने अनुरोध किया और इस दौरान दोनों पक्षों के बीच नोकझोंक भी हुई। जब रेंजर ने गाड़ी नहीं छोड़ी तो वाहन मालिक अपने छह साथियों के साथ वहां से चला गया। इस घटनाक्रम के कुछ घंटों के बाद रेंजर की हत्या उनके घर के कुछ दूर पर ही बाजार स्थल में कर दी गई। यह हत्या चाकू और तलवार नुमा किसी हथियार से की गई थी। बहस के दौरान जो डिप्टी रेंजर, रेंजर लदेर के घर में मौजूद था जब वह रात में अपने घर से निकल कर देखा तो रेंजर की लाश पड़ी हुई थी। पुलिस ने इस मामले में उक्त 7 लोगों को आरोपी बनाया था ।जिन्हें न्यायालय में प्रस्तुत करने के बाद जेल भेज दिया गया था।

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