अक्षय की इस फिल्म से कठपुतली बने दर्शक डोर घुमाकर खूब की ‘चीटिंग’

अक्षय की इस फिल्म से कठपुतली बने: ल्ममेकिंग में एक शब्द बहुत प्रयोग में आता, ‘चीट कर लेंगे!’ मतलब कुछ ऐसा करेंगे कि जिसे दर्शक पकड़ न पाए। मसलन, शूटिंग करते समय कोई लाइन ठीक से शूट नहीं हुई या कहीं किसी कलाकार के चेहरे के भाव सही से नहीं आए या ऐसी ही छोटी मोटी बातें। फिल्म के संपादन के समय जब ये दिक्कतें पकड़ में आती तो बिना असली लोकेशन पर जाए, कलाकार के साथ ये दृश्य मुंबई में ही या जहां वह उस वक्त होता, वहां जाकर ‘चीट’ कर लिए जाते। दाल में नमक के बराबर की ये ‘चीटिंग’ दर्शकों को भी अखरती नहीं थी। लेकिन, निर्देशक रंजीत एम तिवारी की नई फिल्म ‘कठपुतली’ शुरू से लेकर आखिर तक दर्शकों से ऐसी चीटिंग है कि जिसे लोग बरसों बरस याद करेंगे।
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अक्षय की इस फिल्म से कठपुतली बने : निर्माता वाशु भगनानी ने यहां पूरी की पूरी कसौली को ‘चीट’ करके लंदन के पास किसी कस्बे में बना दिया है। लेकिन, न पेड़ों के पत्ते झूठ बोलते हैं, न इमारतें और न ही मिट्टी। ध्यान से फिल्म देखें तो समझ आएगा कि ‘कठपुतली’ में डोर इस फिल्म को बनाने वालों के हाथ में है और नाच इसे देखने वाले दर्शक रहे हैं।
कहानी पेंचदार है। तथाकथित कसौली की घुमावदार सड़कों जैसी गोल गोल चक्कर लगाती है। फिल्म बनाने के सपने देखने वाला बंदा अपनी बहन और बहनोई के जिद करने पर अपने पिता के देहांत के बाद अनुकंपा कोटे से पुलिस की नौकरी में लग जाता है। वर्दी उसकी पुलिस की है लेकिन दिमाग उसका उसी रिसर्च में लगा रहता है जो उसने अपनी पहली फिल्म लिखने के दौरान की थी। फिल्म स्कूल जाने वाली बच्चियों की हत्याओं का सेटअप तैयार करती चलती है। दर्शकों को कभी बाएं ले जाती है, कभी दायें ले जाती है। और, क्लाइमेक्स में जब इस सेटअप के पेबैक की बारी आती है तो फिल्म हाथ खड़े कर देती है कि भैया, इत्ते में इत्ता ही हो पाया। कहने को फिल्म एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर बताई जाती है, लेकिन इससे बढ़िया साइकोलॉजिकल थ्रिलर तो राधिका आप्टे की ‘अहल्या’ है और यूट्यूब पर फ्री में उपलब्ध है।