सरकार ने SBI को कमीशन के तौर पर दिए 9.53 करोड़
Electoral bond: जहां एक ओर राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) के जरिए गोपनीय चंदा मिल रहा है. वहीं दूसरी ओर इन बॉन्ड की छपाई और कमीशन का भार आम लोगों की जेब पर है. केंद्र सरकार की ओर से राजनीतिक दलों को फंड देने के लिए जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड के कमीशन और छपाई की लागत का भुगतान टैक्सपेयर्स की जेब से किया जाता है. जिसके तहत सरकार ने 9.53 करोड़ रुपये एसबीआई को दिए हैं.
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने कमोडोर लोकेश के बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के अपने जवाब में कहा, 22 चरणों में चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए अब तक सरकार कमीशन के रूप में कुल 7.63 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुकी है, जिसमें जीएसटी भी शामिल है. भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स जारी करने के लिए अधिकृत एकमात्र बैंक है.
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आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि जीएसटी सहित 1.90 करोड़ रुपये की राशि, अब तक चुनावी बॉन्ड की छपाई के लिए सरकार पर लगाई गई है.” 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने के बाद से 22 फेज में ईबी के माध्यम से पार्टियों द्वारा एकत्र की गई कुल राशि 10,791 करोड़ रुपये हो गई है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनावों से पहले, 1 अक्टूबर से 10 अक्टूबर के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड की 22 वीं बिक्री में राजनीतिक दलों को 545 करोड़ रुपये मिले. राजनीतिक दलों को इस साल जुलाई में हुई पिछली बिक्री में दानदाताओं से 389.50 करोड़ रुपये की ईबी प्राप्त हुई थी.
किस साल चुनावी बॉन्ड से कितने आए रुपये
Electoral bond: दिलचस्प बात यह है कि प्रमुख राजनीतिक दलों ने चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त राशि का खुलासा नहीं किया है. इसके अलावा, चूंकि बॉन्ड सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के माध्यम से बेचे जाते हैं, इसलिए सरकार को पता चल जाएगा कि कौन किस राजनीतिक दल को फंड कर रहा है. एसबीआई के अनुसार दाताओं ने 2018 में 1,056.73 करोड़ रुपये, 2019 में 5,071.99 करोड़ रुपये और 2020 में 363.96 करोड़ रुपये, 2021 में 1502.29 करोड़ रुपये और 2022 में 2,797 करोड़ रुपये दिए हैं.