पुरूषोत्तम मास की महिमा सबसे पुण्य फलदायी..* *समग्र ब्राह्मण परिषद् छत्तीसगढ़ का अनूठा प्रयास…
RGHNEWS प्रशांत तिवारी ज्ञान का कोई मोल नहीं होता । ज्ञान अनमोल होता है । चाहे वह किसी भी विषय या क्षेत्र से संबंधित हो । ज्ञान का अर्जन अनुभव को बढ़ाता है ।
ज्ञान का अर्जन किसी भी विधा में किया जा सकता है । यथा शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा दर्शन, आध्यात्मिक, पौराणिक आदि ।
पुरातन काल से ही शास्त्र सम्मत ज्ञान का समाज में विशेष महत्व रहा है और आज के आधुनिक युग में सनातनपंथियों के लिए ज्ञान का यह भंडार बहुपयोगी बना हुआ है ।
यूँ तो तो सनातन धर्म में वर्ष के सभी बारह मासों का अत्यंत महत्व है । हर मास अपनी धार्मिक और पौराणिक गाथाओं से युक्त समाज के लिए प्रेरक के रूप में अपनी महत्ता दर्शाता है ।
किंतु इन बारह मास के अतिरिक्त भी एक अन्य मास है जो शास्त्रों में *पुरूषोत्तम मास, अधिमास या मलमास* के रूप में विख्यात है । यह मास सभी मासों में अत्यधिक पुण्यफलदायी है । इस मास में किए गए पुण्य कार्य अक्ष्क्षुण रहते हैं ।
पुरूषोत्तम मास की महिमा बताती हुई एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है । जिसके अनुसार… सृष्टि के आरंभ के पश्चात् युगों की गणना हुई जिसमें सतयुग को प्रथम युग माना गया । इसी सतयुग से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक गाथा है..
*हिरण्यकरन वन* नामक स्थान का असुर राजा था हिरण्य कश्यप । जोकि, अत्यंत क्रूर, अत्याचारी,व आततायी था । जनता उसके अत्याचारों से अत्यंत ही भयभीत और व्यथित रहती थी । ऐसे निरंकुश और दुष्ट दैत्यराज के घर ईश्वरभक्त पुत्र भक्त प्रल्हाद कआ जन्म हुआ । वह बाल्यकाल से ही भगवान का परमभक्त था । वह दिन-रात भजन-कीर्तन में लीन रहता था । हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र की यह भगवद् भक्ति और प्रभु के प्रति असीम आसक्ति अखरती थी ।
वह तरह-तरह के उपाय से प्रताड़ित कर अपने पुत्र को यातना व कष्ट देता, ताकि, वह सुरपूजा को छोड़ असुर पूजा में ध्यान लगाए । किंतु बालक भक्त प्रल्हाद पर इन प्रताड़नाओं का कोई असर नहीं होता था । वह प्रभु की भक्ति में रमा भगवन्नाम जपा करता था । एक बार जब असुर राज हिरण्य कश्यप अपने भवन में सोने के सिंहासन पर विराजमान थे तभी बालक प्रलहाद को ईशभक्ति में लीन देखकर क्रोधित हो उठे । और क्रोध से गरजते हुए अपने भक्त पुत्र से कहा.. *बता तेरा ईश्वर कहाँ हैं..*? बालक ने मासूमियत भरे शब्दों में कहा कि, .. *मेरे ईष्ट तो इस ब्रह्मांड के कण-कण में समाए हैं ।*
इतना सुनते ही असुरराज ने क्रोध से भुजा फड़काते और नेत्र लाल करके अबोध भक्त बालक से एक खंबे की ओर संकेत करते हुए पूछा.. *क्या तेरा भगवान इस खंबे में हैं ..?*
बालक ने बिना भय के बिना विचलित हुए दृढ़ता से कहा .. *हाँ ।*
इतना सुनते ही दैत्यराज के क्रोध का पारावार न रहा और उसने आव देखा न ताव । ताबड़तोड़ खंबे पर प्रहार करने लगा ।
अकस्मात् ही खंबे में भयंकर गर्जना हुई तथा साक्षात् श्रीहरि विष्णु नरसिंह रूप में प्रकट हुए । भयानक रूप, क्रोध से नेत्र अंगारे की भांति दहकते, भुजा व नथुने फड़कते हुए चेहरा आधा मानव तथा पशु रूप । विष्णु जी के इस रूप को देखकर सारे दरबार में सन्नाटा छा गया । स्वयं हिरण्यकश्यप विचलित और भयभीत हो गया ।
चूँकि, हिरण्यकश्यप ने वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु न दिन में न रात में , न अस्त्र से न शस्त्र से, न धरती में न आकाश में, न नर से न पशु से, न वर्ष के बारह महीने में होगी ।
इस विचित्र वरदान के कआरण हिरण्यकश्यप को मारना देवताओं के वश में नहीं था ।
अतः अपने परम भक्त बालक की रक्षा करने तथा जनता को उस आततायी के अत्याचारों से मुक्त कराने हेतु स्वयं जगत्पति विष्णु जी को नरसिंह अवतार धारण करना पड़ा । तथा असुरराज का वध कर सभी को उसके कष्ट और संताप से मुक्त कराया । श्रीहरि से हिरण्यकश्यप कआ विध्वंस करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया तथा एक अतिरिक्त मास का पुरूषोत्तम मास निर्माण किया । इसी मास में ही हिरण्यकश्यप का वध हुआ ।
चूँकि, इस पुरूषोत्तम मास की रचना स्वयं श्री विष्णु जी ने किया है इसलिए इस मास की महत्ता अत्यंत पुण्यफलदायी है । इसे अधमास या मलमास भी कहते हैं ।
इस मास में किए गए पुनीतकर्म विशिष्ट और भगवान को प्रिय होकर उच्चकोटि व विशेष शुभफल दायी होते हैं ।
लोक कल्याणकारी और जन सेवा का संकल्प लिए अपने सामाजिक कार्यों से एक अटूट पहचान बना चुके *समग्र ब्राह्मण परिषद् छत्तीसगढ़* ने इस उत्तम मास की महिमा और प्रताप का गुणानुगान करते हुए समाज के विभिन्न आयुवर्ग में आध्यात्मिक और अलौकिक ज्ञान की गंगा बहाने के उद्देश्य से विविध कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोगों को धार्मिक और पौराणिक जीवन से जोड़ने का एक अनोखा प्रयास करने जा रही है ।
18 सितंबर से लेकर 17 अक्टूबर तक विभिन्न प्रचार के साधनों से जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया, सोशल साइट्स, यू ट्यूब आदि के माध्यम से लोगों को श्रीपति विष्णु जी के अत्यंत प्रिय मास, * पुरूषोत्तम मास की गाथा, महिमा व प्रताप का गुणगान करते हुए लोगों में शास्त्र निमित्त चर्चा व धार्मिक और आध्यात्मिक आख्यान के माध्यम से सनातन धर्म के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास करेंगे ।
इन सबके प्रस्तुतिकरण के लिए विभिन्न धर्मानुयायियो, पुरोधा पंडितो, व भगवद् ज्ञानी जैसे शास्त्रों के उचित जानकार महानुभावों की सहायता से कार्यक्रम को सफल बनाने व जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लेकर *समग्र ब्राह्मण परिषद् छत्तीसगढ़* यह अनूठा प्रयास करने जा रही है ।
संगठन के प्रदेश अध्यक्ष *माननीय डॉ. भावेश शुक्ला जी के दूरदर्शिता, कल्पनाशील व प्रयोगात्मक विचारधारा से ही समाज खे प्रति ऐसे अनूठे कार्य संपन्न हो पाते हैं जिसके पूरा समग्र ब्राह्मण परिषद् परिवार आत्मिक रूप से सहयोग कर कार्यक्रम को सफ़ल बनाने में अपनी महती भूमिका निभाते हैं ।